बुधवार, 1 अक्तूबर 2008

थोड़ा सैंयम बरतें..सार्वजनिक स्थलों पर न करें

सचिन जी मैं आपसे बहुत नाराज हूं...आज तक जिस ब्लॉगबाजी की बीमारी से से खुद को बचाये रखा था आपकी वजह से वो गले पड़ गई....संस्थान मेरे जिस समय के लिये मुझे कीमत देता है...उस समय में ब्लॉगबाजी कर रहा हूं इसकी कीमत मुझे अपनी रात की नींद खोकर चुकानी होगी...सचिन जी इसके लिये भी मैं आपको ही दोषी मानता हूं....लोग खुलेआम हस्तमैथुन करने लगे हैं इसके लिये भी आप ही जिम्मेदार हैं...साथ ही आपको बधाई भी देता हूं कि जो काम बहुत से लोग सिर्फ सोचते रहे वो आपने कम से कम शुरू तो कर दिया...औऱ बधाई उन लोगों को भी जिन्होने उम्मीद के मुताबिक सचिन जी के लेख पर प्रतिक्रिया की....लेकिन अपने उन मित्रों के लिये क्या कहूं जो मेरे विश्वास के मुताबिक दूर खड़े तटस्थ होने का जैश्चर देते रहे...खैर मेरे उस दोस्त के साथ मेरी सहानभूति जरूर है जिसकी काबलियत का लोहा मैंने पिछले संस्थान में ही मान लिया था...सचिन जी आपको ऐसा नहीं लिखना चाहिये था जिससे मेरे दोस्त को इस कदर मिर्चें लगीं कि वमन से भी काम नहीं चला...उसने कोना तलाशना भी बेहतर नहीं समझा और ब्लॉग पर ही हस्थमैथुन कर डाला...अरे भाई कुत्ते बिल्ली बंदर और सूअर जैसे जानवर क्या कम थे खुले आम मैथुन करने के लिये...खैर जिस काबिलियत का जिक्र किया है...उससे बिल्कुल इत्तेफाक रखता हूं कि....पूरा का पूरा उत्तरवैदिक साहित्य तभी रचा गया जब आर्य मगध के पार गए...6 वेदांगों में से 5 का केंद्र बिहार ही रहा... आज भी हंस हो या वागर्थ या कोई अन्य साहित्यिक पत्रिका...सबसे ज्यादा बिहार मैं ही पढ़ी जाती है...लेकिन क्या तुमने इनमें से कुछ भी पढ़ा है?....चाहे कुछ भी जवाब दो लेकिन इस तरह खुले आम हस्तमैथुन करके तुम जवाब पहले ही दे चुके हो....मेरे दोस्त साक्षर होने और पढ़े लिखे होने में फर्क है ये तुम शायद ही समझते हो...और ये भी तो बताओ कि पुश्तैनी जीन के भरोसे ही रहोगे या अपने लिये भी कुछ करोगे...यकीनन तुम्हार इरादा हस्तमैथुन करके बच्चा पैदा करने का तो नहीं होगा....लेकिन अपने पुश्तैनी जीन को अपनी अगली पीढ़ी को जस का तस सौंप देना भी तो हस्तमैथुन से बच्चा पैदा करने जैसा ही है....अगर आप ये नहीं जानते हो दोस्त तो मैं आपको बता दूं कि इससे जीन की गुणवत्ता में ह्रास होता रहता है....केवल जन्म से ब्राहम्ण होने से ही कोई ब्राहम्ण हो जाता तो न उस उत्तरवैदिक साहित्य की जरूरत होती और न 6 वेदांगों की....सचिन जी ये तो मैं भी कहूंगा...आप से एक चूक हो गई....चूक ये कि आपने उस वाद को अनदेखा किया जो बिहारवाद से भी तेजी से मीडिया को जकड़ रहा है....वो वाद है चमचावाद...इसके लिये किसी राज्य का होने की कोई जरूरत नहीं है....बिहार, यूपी...या राजस्थान कहीं का भी हो सकता है...

3 टिप्‍पणियां:

bajafad ने कहा…

नितिन जी, सचिन जी ने तो सवाल उठाया..और जानना चाहा कि जो उनके मन में है...वो कितना सही है...मै भी यहां सवाल पर सवाल ही उठा रहा हूं हालाकि मेरे सवालों में बहुत से जवाब भी मिलेंगे...बस सवाल नजरिए का होगा कि आप और वो मेरे सवालों में जवाब ढूंढ़ते हैं या उत्र की संतुष्टि...नितिन जी सचिन जी ने जानना चाहा कि क्या मीडिया में बिहारीवाद है...मै पूछता हूं...पूछने वालों को क्या दिखाई नहीं देता...अरे जो चीजें जगजाहिर हैं...उसे उजागर ही तो किया है सचिन जी ने...बिहारीवाद मीडिया में...ये कौन नहीं जानता...बिहारीवाद को लेकर दिल्ली के उप राज्यपाल लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल ने टिप्पणी की...मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने की...वो भी दिल्ली में गंध मचाने वालों को बिहारी कहा गया...तो मीडिया भी तो दिल्ली में ही है....सो भला गंदगी गली मोहल्लों में दिखे या एअरकंडीशंड दफ्तरों में...जब हटाने की बात होगी तो बहस तो होगी ही...हाल ही बाला साहेब ठाकरे ने कहा कि एक बिहारी सौ बीमारी...मतलब वाद वंशानुगत है...कपड़ों लत्तों में किसी मैल की तरह नहीं जो एरियल से धुला जा सके..वो तो फेफड़ों में है जो हर सांस के साथ बाहर की ताजगी को प्रदूषित करता रहता है....अभी तक मैने वही कोट किया है जो हमारे बड़े बुजुरेगों ने कहा...हमने जो महसूस किया वो मै अभी नहीं लिख रहा...सचिन के मन की आशंका पर नितिन जी आपके अलावा भी मेरे कई जानने वालों ने( मित्र नहीं) भी कंप्यूटर के इस की बोर्ड को दबाया...जो शब्द प्रस्फुटित हुए...वो उनके मन की व्यथाएं हैं...मेरे एक जानने वाले ने जो लिखा उससे मुझे उनके लेखन पर संदेह हुआ...क्योंकि उनके बारे में जितना दूसरे बताते हैं और मै जान पाया हूं...उसके मुताबिक अगर उतने ही बढ़िया वो लिखाड़ी होते तो हमारे सहयोगी नहीं होते...वो स्टार या इंडिया न्यूज़ में होते...भले ही पल पल की खबर लिख रहे होते...उनका नाम निकाले जाने की सूची में नहीं होता...और अगर भूल से हो भी गया तो दो महीनों का चेक लेकर फिर से देवघर ट्राफी नहीं खेलते...आईसीएल...ना सही तो प्रीमियर लीग की किसी टीम में जुगाड़ लगाते...वो इस काम में बड़े महारथी हैं...जो काम वो कर रहे हैं उसमें उनका जुगाड़ लग जाता है...देवघर न सही छपरा वाले तो सपोर्ट कर ही देते हैं...मगर उनकी भी मजबूरी है...जो बनने के लिए वो अब दोबारा जन्म लेने की बात कर रहे हैं दरअसल वहां उनका जुगाड़ नहीं लग पाया....मोतिहारी वाले भी कितना सरकाएंगे..आखिर उन्हें भी तो सरक..नहीं सड़क पर चलने वाला चाहिए.....खैर मै इसे व्यक्तिगत नहीं बनाता...और मेरे इस जानने वाले को अपनी टिप्पणियों से अगर परहेज लगे तो इस खुराक को वो ना ले....बहुत हो चुका..नितिन जी आपकी बातें पढ़कर मैने भी पूरी तल्खी से लिख दिया...लेकिन सही लिखा है...अब किसी के चुन्ना काटे तो मेरी बला से....सचिन जी ने जो कहा वो दिखता है...एक दो नहीं कई अखबारों और टीवी चैनलों में दिखता है...सिर्फ काम करने वालों पर ही नहीं ऑन स्क्रीन भी दिखता है....कोसी की मार देखकर क्या बिहारी क्या नान बिहारी अरे अंग्रेज का गला भी भर आया होगा...पूरे देश में बिहार बसा है...और देश बिहार के लिए सोचता है...बाढ़ में मदद के बहुत से हाथ बिहार से नहीं बाहर से भी उठे....यहां मै एक सवाल करता हूं..कि क्या बाढ़ बिहार में ही आई...तो भला गैर बिहारी जगहों की बाढ़ कुछ अखबारों में ही क्यों सिमट कर रही गई...वजह साफ है कि बहुत से चैनलों में शीर्ष पर बिहारी हैं और उन्हें अपने दामन को बचाने के सिवा किसी और की परेशानी नहीं सुनाई देती.....बस मै अपने सारे सवाल जवाब यहीं खत्म करता हूं...अंत में नितिन जी इतना ही कि सचिनजी ने जो आशंका जताई है वो निर्मूल नहीं है....

अतुल राय ने कहा…

बात संयम की है..शायद हम सब संयम खो रहे हैं...विचार विचार की तरह रखे जाएं तो बेहतर है...किसी निष्कर्ष तक पहुचंना ही विचारो की सार्थकता है..हम ऐसा करने में नाकाम रहे हैं...मैने भी कुछ लिखने की कोशिश की है...पढिएगा लेकिन कोई व्यक्तिगत आक्षेप समझ कर बिल्कुल नहीं...क्योंकि वाद के झमेले में मैं नहीं पड़ता...मैने दोनो राज्यों को करीब से देखा है...दोनो पहले से ही समस्याग्रस्त हैं...उनकी समस्या को और ना बढ़ाया जाए तो बेहतर है...फिलहाल ये लिंक है देखिएगा जरुर
http://renukoot.blogspot.com

ADARSH ने कहा…

प्यारे साथियों आप सब का वाकयुद्ध मैनें बाजाफ़ाड पर पढ़ा..वाकई में आप सब तो मिल कर बाजाफ़ाडने पर तुल गए हैं। हो सकता है कि आप सब को मेरी बातें सही न लगे पर मुझे लगता कि आप सब से सही ग़लत का तमगा लेकर मुझे चांद के पार नही जाना इसलिए अपने मन की बात लिख रहा हूं।
सचिन भाई की बातों में एक दर्द का एहसास तो मुझे ज़रूर हुआ पर मै ये नही मानता की ये बात सर्वव्याप्त है। एक बिहारी होने के नाते मुझे भी कई बार इस बात का अहसास कराया गया कि अमुक चैनल में अमुक बिहारी मेरी मदद कर सकता है। पर मुझे ऐसा लगा भी नही। एकआध बार कोशिश भी की पर कुछ जमा नही । जबकी मुझे उन लोगों से ज्यादा मदद मिली जो बिहारी नही थे। मुझे लगता है कि किसी का बिहारी होना ही उसे चैनल में लबीं आयु प्रदान नही कर सकता..आगर उसमें काम करने की काबिलियत नही है तो कभी भी उस बिहारी के करियर का गला घोटा जा सकता है। खैर ये तो थी सचिन भाई की बात..... पर कुछ बिहारी भाईयों को तो उनकी बात से ऐसी मिर्ची लगी कि लगा जैसे कोसी भी उस आग को ठंडा नही कर पाएगी। उन लोगों ने तो समूचे बिहार का इतिहास पलट कर रख दिया केवल ये जताने के लिए की मिडिया में बिहारवाद नही है। मेरा इससे पाला नही पड़ा पर मै ये नही कहता कि ऐसा नही है। तो भईया बिहारवाद है तो ग़लत नही है और नही है तो भी ग़लत नही है। लेकिन शायद ज़रूरत है किसी भी वाद से ऊपर उठने कि जो शायद हमारे दिमाग में प्रदेश के नक्शे कि तरह खुद गया है। मान्यवर सचिन भाई ने एक सवाल उठाया जिस पर बहस हो सकती थी पर कुछ लोगों ने ये साबित करने के लिए कि बिहारवाद नही हैं...जिस संकीर्ण मानसिकता का परिचय वो मुझे बिहार वाद कतई नही लगता। बाकी विद्वानो कि इस बाढ़ मैं तो एक तिनका हूं शायद ये बहस लंबी चले देखते हैं.. पर अंत में एक बात अगर बिहार वाद या प्रदेश वाद को छोड़कर हम ऊपर उठें और कॉपी पर मेहनत करें तो समझ आए कि आप किसी वाद को बढ़ावा नही दे रहे।
आखिरी पंक्ति समझ न आए तो अनर्गल राय न दें। धन्यवाद......अंत में एक वाद आ ही गया।